शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

श्री सूक्त के कुछ प्रयोग


तस्मै श्री गुरवे नमः 

श्रीं ह्रीं क्लीं।।हिरण्य-वर्णा हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं
, जातवेदो म आवह।। श्रीं ह्रीं क्लीं
सुवर्ण से लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-पत्र के आसन पर बैठकर, ‘श्रीसूक्त की उक्त हिरण्य-वर्णा॰॰ ऋचा में श्रीं ह्रीं क्लीं बीज जोड़कर प्रातः, दोपहर और सांय एक-एक हजार (१० माला) जप करे। इस प्रकार सवा लाख जप होने पर मधु और कमल-पुष्प से दशांश हवन करे और तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण-भोजन नियम से करे। इस प्रयोग का पुरश्चरण ३२ लाख जप का है। सवा लाख का जप, होम आदि हो जाने पर दूसरे सवा लाख का जप प्रारम्भ करे। ऐसे कुल २६ प्रयोग करने पर ३२ लाख का प्रयोग सम्पूर्ण होता है। इस प्रयोग का फल राज-वैभव, सुवर्ण, रत्न, वैभव, वाहन, स्त्री, सन्तान और सब प्रकार का सांसारिक सुख की प्राप्ति है।

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।। 
दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
ॐ ऐं हिरण्य-वर्णां हरिणीं
, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं
, जातवेदो म आवह।।
दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या
, सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।
 
यह श्रीसूक्त का एक मन्त्र सम्पुटित हुआ। इस प्रकार तां म आवहसे लेकर यः शुचिः तक के १६ मन्त्रों को सम्पुटित कर पाठ करने से १ पाठ हुआ। ऐसे १२ हजार पाठ करे। चम्पा के फूल, शहद, घृत, गुड़ का दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि, वचन-सिद्धि प्राप्त होती है। 


  ॐ ऐं ॐ ह्रीं।। 
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्। 
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरुषानहम्।। 
ॐ ऐं ॐ ह्रीं ॥  
सुवर्ण से लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-पत्र के आसन पर बैठकर, नित्य सांय-काल एक हजार (१० माला) जप करे। कुल ३२ दिन का प्रयोग है। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। माँ लक्ष्मी स्वप्न में आकर धन के स्थान या धन-प्राप्ति के जो साधन अपने चित्त में होंगे, उनकी सफलता का मार्ग बताएँगी। धन-समृद्धि स्थिर रहेगी। प्रत्येक तीन वर्ष के अन्तराल में यह प्रयोग करे।

  ॐ ह्रीं ॐ श्रीं।। 
अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्। 
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। 
ॐ ह्रीं ॐ श्रीं 
उक्त मन्त्र का प्रातः, मध्याह्न और सांय प्रत्येक काल १०-१० माला जप करे। संकल्प, न्यास, ध्यान कर जप प्रारम्भ करे। इस प्रकार ४ वर्ष करने से मन्त्र सिद्ध होता है। प्रयोग का पुरश्चरण ३६ लाख मन्त्र-जप का है। स्वयं न कर सके, तो विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कराया जा सकता है। खोया हुआ या शत्रुओं द्वारा छिना हुआ धन प्राप्त होता है।

 करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः। 
अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्। 
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। 
करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।। 
उक्त आधे मन्त्र का सम्पुट कर १२ हजार जप करे। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इससे धन, ऐश्वर्य, यश बढ़ता है। शत्रु वश में होते हैं। खोई हुई लक्ष्मी, सम्पत्ति पुनः प्राप्त होती है।

 ॐ श्रीं ॐ क्लीं।। 
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। 
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। ॐ श्रीं ॐ क्लीं 
उक्त मन्त्र का पुरश्चरण आठ लाख जप का है। जप पूर्ण होने पर पलाश, ढाक की समिधा, दूध और गाय के घी से हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोज करे। इस प्रयोग से सभी प्रकार की समृद्धि और श्रेय मिलता है। शत्रुओं का क्षय होता है।

 सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि! 
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।। 
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। 
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। 
सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि! एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।। 
उक्त सम्पुट मन्त्र का १२ लाख जप करे। ब्राह्मण द्वारा भी कराया जा सकता है। इससे गत वैभव पुनः प्राप्त होता है और धन-धान्य-समृद्धि और श्रेय मिलता है। शत्रुओं का क्षय होता है।

 ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।। कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।।
दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः
, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या
, सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।।
उक्त प्रकार से सम्पुटित मन्त्र का १२ हजार जप करे। इस प्रयोग से वैभव, लक्ष्मी, सम्पत्ति, वाहन, घर, स्त्री, सन्तान का लाभ मिलता है।

 ॐ क्लीं ॐ वद-वद।। 
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।
ॐ क्लीं ॐ वद-वद।।
 
उक्त मन्त्र का संकल्प, न्यास, ध्यान कर एक लाख पैंतीस हजार जप करना चाहिए। गाय के गोबर से लिपे हुए स्थान पर बैठकर नित्य १००० जप करना चाहिए। यदि शीघ्र सिद्धि प्राप्त करना हो, तो तीनों काल एक-एक हजार जप करे या ब्राह्मणों से करावे। ४५ हजार पूर्ण होने पर दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। ध्यान इस प्रकार है- अक्षीण-भासां चन्द्राखयां, ज्वलन्तीं यशसा श्रियम्। देव-जुष्टामुदारां च, पद्मिनीमीं भजाम्यहम्।। इस प्रयोग से मनुष्य धनवान होता है।

 ॐ वद वद वाग्वादिनि।।
आदित्य-वर्णे! तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
ॐ वद वद वाग्वादिनि
 
देवी की स्वर्ण की प्रतिमा बनवाए। चन्दन, पुष्प, बिल्व-पत्र, हल्दी, कुमकुम से उसका पूजन कर एक से तीन हजार तक उक्त मन्त्र का जप करे। कुल ग्यारह लाख का प्रयोग है। जप पूर्ण होने पर बिल्व-पत्र, घी, खीर से दशांश होम, तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोजन करे। यह प्रयोग ब्राह्मणों द्वारा भी कराया जा सकता है। ऐं क्लीं सौः ऐं श्रीं- इन बीजों से कर-न्यास और हृदयादि-न्यास करे। ध्यान इस प्रकार करे- उदयादित्य-संकाशां, बिल्व-कानन-मध्यगाम्। तनु-मध्यां श्रियं ध्यायेदलक्ष्मी-परिहारिणीम्।। प्रयोग-काल में फल और दूध का आहार करे। पकाया हुआ पदार्थ न खाए। पके हुए बिल्व-फल फलाहार में काए जा सकते हैं। यदि सम्भव हो तो बिल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर जप करे। इस प्रयोग से वाक्-सिद्धि मिलती है और लक्ष्मी स्थिर रहती है।

 ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय
, महा-माया प्रयच्छति।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजाते
, वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
, मायान्तरा ताश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
ज्ञानिनामपि चेतांसि
, देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय
, महा-माया प्रयच्छति।। 
उक्त मन्त्र का १२००० जप कर दशांश होम, तर्पण करे। इस प्रयोग से जिस वस्तु की या जिस मनुष्य की इच्छा हो, उसका आकर्षण होता है और वह अपने वश में रहता है। राजा या राज्य-कर्ताओं को वश करने के लिए ४८००० जप करना चाहिए। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. इसकी रासायनिक प्रतिक्रिया बताओ महोदय यह मंत्र आयुर्वेद और धातुओं पर निर्भर करता है जिससे कि गोल्ड का निर्माण होता है

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