सोमवार, 6 जनवरी 2014

भारत में कब और कैसे गायों के क़तलगाह शुरू हुए।

मुगल साम्राज्य और गाय:

बाबर ने अपनी वसीयत “तूज़ुक-ए-बाबरी” में अपने पुत्रों से कहा “हुमायूँ को हिंदूओं की भावनाओं की इज्जत करनी चाहिए और इसीलिए मुगल साम्राज्य में कहीं भी न तो गाय की बलि हो और न ही गायों को मारा जाए। यदि कोई मुगल राजा इस का उलंघन करेगा, उसी दिन से हिंदुस्तान के लोग मुगलों का परित्याग कर देंगे”।
अनेकों मुगल राजाओं जैसे की अकबर, जहाँगीर, अहमद शाह आदि ने अपनी सल्तनत में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। मैसूर रियासत के शासकों (वर्तमान में कर्णाटक राज्य) हैदर अली और टीपू सुल्तान ने तो गौ हत्या और गौ मांस भक्षण को एक संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया था, और यह कानून बनाया था की यदि कोई व्यक्ति गौ हत्या में लिप्त पाया गया या फिर गाय का मांस बेचता या खाता हुआ पाया गया तो उसके दोनों हाथ काट दिये जाएँ।

आज भारत वर्ष में 36000 से अधिक क़तलगाह है, कैसे शुरू हुआ ये सब?

अंग्रेज़ो का शासन काल और कत्लगाह

आजादी से पहले महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू, दोनों ही ने यह घोषणा कर दी थी की आजादी के बात भारत में पशु कत्लगाहों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। परंतु यह स्वाभाविक है की इसे लागू नहीं किया, आखिर क्यों? क्योंकि रोबर्ट क्लाइव ने भारतीय मुसलमानों में ऐसा प्रचार किया की “गौ मांस खाना मुसलमानों का धार्मिक अधिकार है” और धीरे-धीरे यह वोट बैंक की राजनीति में परिवर्तित हो गया, कैसे?  आइये जाने...

राबर्ट क्लाइव जो की तथाकथित रूप से भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का स्थापक था और बंगाल का दो बार गवर्नर भी बना, भारत की कृषि आधारित मजबूत अर्थव्यवस्था को देख कर आश्चर्य चकित था। उसने भारत की कृषि प्रणाली का गूढ़ अध्ययन किया और पता लगाया की इसका मूल आधार है हमारा पशु धन और उसमें भी प्रमुख रूप से गाय। उसने पाया की न सिर्फ धार्मिक रूप से वरन सामाजिक रूप से भी गाय बारात में एक महत्वपूर्ण पशु है। गाय किसी भी हिन्दू के घर में उसके परिवार के सदस्यों की भांति, परिवार का एक अभिन्न अंग थी। उसे यह जानकार आश्चर्य हुआ की अनेक गावों में तो पशुओं की संख्या वहाँ पर रहने वाले गाँव वालो से भी अधिक थी। सदियों से गाय का गोबर और मूत्र न केवल दवाइयों के निर्माण में काम आता था, बल्कि उसका उपयोग ईंधन और खाद के रूप में भी किया जाता था।  उस समय भारतीय कृषक किसी भी रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया करते थे। 

अतः राबर्ट क्लाइव ने यह निर्णय लिया की वह भारतीय समाज और कृषि व्यवस्था की इस रीढ़ को तोड़ देगा। और इस तरह, भारत का पहला पशु वध कारख़ाना राबर्ट क्लाइव द्वारा सन 1760 में कलकत्ता में शुरू हुआ। इस कारखाने में लगभग 30,000 गायें प्रतिदिन काटने की क्षमता थी। अब कोई भी अंदाजा लगा सकता है की इस अकेले कारखाने में एक साल में कितनी गए काटी जाती होंगी। धीरे-धीरे सौ वर्षों के अंतराल में भारतीय कृषि व्यवस्था को सहयोग देने के लिए पशुओं की कमी होने लगी।  अंग्रेज़ो ने इसकी भरपाई के लिए भारतीय किसानो को कृत्रिम खादों के उपयोग के लिए प्रेरित किया और भारत में ब्रिटेन से रासायनिक खाद, जैसे यूरिया और फास्फेट आदि का आयात शुरू हो गया। इस प्रकार भारतीय कृषि व्यवस्था अपनी नैसर्गिक प्रकर्ति पर आधारित व्यवस्था छोड़ कर  धीरे-धीरे विदेशों में निर्मित रासायनिक खादों और कलपुर्ज़ो पर निर्भर करने लगी।

क्या आप जानते हैं की 1760 से पहले भारत में न केवल गौ हत्या पर प्रतिबंध था, बल्कि सार्वजनिक रूप से मदिरा पान और वेश्यावृति आदि पर भी प्रतिबंध था। राबर्ट क्लाइव ने इन तीनों से प्रतिबंध हटा लिया और उन्हे कानूनी जामा पहना दिया।

इस प्रकार, अंग्रेजों ने अपनी इस चाल से एक तीर से तो शिकार किए, पहला था की पशु आधारित भारतीय कृषि व्यवस्था का नाश (पशुओं की संख्या कम कर के) और दूसरा?
यह तो स्वाभाविक ही था की इन कत्लगाहों में कोई भी हिन्दू कसाई के रूप में काम नहीं करता था, अंग्रेज़ वैसे भी अपनी फूट डालो और राज करो की नीति में महारत थे। तो उन्होने क्या किया? उन्होने मुसलमानो को कसाइयों के रूप में इन पशु कत्लगाहों में रोजगार दिया और धीरे धीरे मुसलिम समाज में यह प्रथा बनती गई की गाय को काटना या गाय को खाना उनका धार्मिक अधिकार है।

क्या आप जानते हैं की जिस राबर्ट क्लाइव ने यह सब शुरू किया उसका क्या हश्र हुआ – मित्रों, उसे अफीम खाने की आदत लग गई और अंत में उसने अपनी बीमारियों और भयंकर दर्द से तंग आकर एक दिन आत्महत्या कर ली।

साभार:

1.    Cow Protection in India – L.L. Sundara Ram, pages 122-123 and 179-190.
2.    The foundations of the composite culture in India – Malika Mohammada

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